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पहली बार जब मैने उस लड़की को देखा था, तो कारण था मेरा एक दोस्त, बस इक झलक सी दिखी थी और मैने टाल सा दिया था. मै गांव से आया था कुछ दिन पहले ही, घरवालो ने भेजा था मौसी के यहाँ पढ़ने को, और मै बस 9वी मे था तब. मगर उसकी वो झलक याद सी रह गयी. मुझे 2- 3 दिन मे ही पता लगा की वॊ लड़की मेरे बिल्क़ुल सामने वाले घर मे रहती है, और मेरे दोस्त का रोजाना का आना होता था, सिर्फ उसे 1 बार देखने को. मुझे अजीब लगता था ऐसा भी क्या होगी की ये रोजाना आ जाता है. वॊ लड़की भी जानती थी शायद ये बात, इसलिए जैसे ही मेरा दोस्त आता वॊ घर से बाहर ही नही निकलती, मै समझ गया की इस का आना लड़की को पसंद नही. खैर, खूब चिड कर भी मै उसे आने से मना नही करता था, आखिर ये मेरा पहला और इकलौता दोस्त था शहर मे.
इक दिन अचानक देखता हूं की वही लड़की मेरे घर आयी हुई है, मासी को कुछ देने के लिए. पहली बार मैने उसे देखा ध्यान से, और समझ गया क्यों मेरा दोस्त आ जाता है रोजाना. शायद कोई ही चेहरा इतना मासूम होता होगा, लड़की शायद मेरे वहाँ होने से कुछ शरमा सी रही हो ये सोच कर मै खुद ही चला गया. मगर वॊ याद रह गयी, काफी जल्दी समझ गया की मै खुद भी उसे वापस देखना चाहता हूँ. इन सब के बीच मुझे पता लगा की मेरा दोस्त और ये लड़की साथ मे पढ़े हुए है, और मेरा दोस्त ने उसे प्रोपोज़ भी किया था. मगर जवाब मे ना मिला था, जो सुन कर मैं खुश ही हुआ था. दोस्त का आना, मेरा किसी काम से लड़की के घर जाना, लड़की का मेरे घर आना चलता रहा 2- साल तक. ना ही मैं कभी बोला ना ही वॊ, मुझे तो ये भी नही पता था की वॊ मुझे जानती भी है या मैं अकेला ही अपने दिल से परेशान हूँ. जब वॊ 12वी मे थी, अपने बोर्ड पेपर के लिए रातो मे देर तक जगती थी, उसके कमरे की लाइट दिखती थी खिड़की से. जाने क्या हो गया था मुझे, जब तक वॊ लाइट बंद नही हो जाती मैं भी यूँ ही बेमतलब जगता रहता था. पढ़ना वढ़ना कुछ नही होता था पर बस जगता था.... और यूँ ही पिछले 2 के जैसे अगले कुछ साल भी निकल गए. और अब तक हम सब कॉलेज के 2ईयर मे आ चुके थे. अब तक मैने कभी उस लड़की से बात ही नही की थी, डर लगता था. असल मे हम सभी लड़को को डर लगता था उससे, जितना शक्ल से मासूम थी वॊ उतना ही कड़क रवैया था, ये सही भी लगता था मुझे, वरना छोटे शहरो मे लड़कियों को काफी परेशानियां रहती है लड़को के मामले मे.
मै मेरी कॉलेज बस एक मंदिर के सामने से लेता था, क्योंकि वॊ वहां आती थी और हर सोमवार मंदिर से मिला प्रसाद कुछ और लोगो के तरह ही मेरे हाथ में भी दे जाती थी, अब तक बस इतना ही हो पाया मुझ से की अपने हाथ आगे और नज़रे नीचे कर चुपचाप प्रसाद ले लिया करता. एक दिन अचानक शोर होता है की वॊ किसी लड़के के साथ है, उसके बस स्टॉप पर वॊ दोनों साथ होते है, सुन कर पहले तो विश्वास नही हुआ, मगर वॊ तो जैसे हवा मे घुली हुई थी, ये सब उसे भी पता तो होगा ही, मगर उसने चलने दिया सब.
एक दिन मै अपनी कॉलेज की बस का इंतज़ार कर रहा था, वॊ आयी और मुझ से बोली "मुझे तुमसे कुछ बात करनी है, बताओ कब फ्री होंगे ?", पहली बार उसकी आवाज़ सुनी मैने, हकपका सा गया, कुछ समझ नही आया. फिर खुद को संभाल कर जवाब दिया की "शाम को जब आप अपने क्लास जाएँगी, मै मिलता हूं आपसे.", वो हर शाम अपनी किसी सब्जेक्ट की क्लास लिया करती थी, और मुझे तो उसके बारे में सब कुछ ही पता था. खैर, जैसे तैसे शाम होने तक का समय निकाला, और मै सही टाइम पर घर से निकल गया, वो आयी, और आते ही बोली "तुम्हे कुछ परेशानी है, अगर मै किसी से बात करूँ तो ?", मैने बोला "नहीं". इतने में कोई लड़का आ कर हम से 5 कदम रुक गया, और अपनी साइकिल ठीक करने का नाटक करने लगा, उस दिन मेरा दिमाग शायद घर में ही किसी अलमारी में रहा होगा, कुछ सूझ ही नही रहा था. लेकिन अचानक वो उस साइकिल वाले पर बरस पड़ी "अच्छा, तुम्हारी साइकिल भी यही खराब होनी थी ? अब यहाँ से निकालो वरना साइकिल के साथ साथ तुम्हे भी तोड़ दूंगी"..... "शायद काफी गुस्से में है" मैंने सोचा. साइकिल उठा कर लड़का भाग गया, लेकिन वो हँस पड़ी, और लड़के को यूँ भागते देख मुझे भी हँसी आ गयी. ये हमारी पहली मुलाकात थी, और मुझे नही पता था की मै क्या बोलूंगा उसे, मगर वो बस बोलती ही गयी "तुमहे मेरे दोस्त से क्या परेशानी है ? तुम्हे कुछ कहना था तो मुझे आ कर बोलना चाहिए था" और जाने क्या कुछ. मैं बस सुनता रहा और उसे देखता रहा, मना भी नही कर पाया की वो गलत समझ रही है मुझे, और अचानक बोली "तुम मुझे पसंद करते हो ना ?" मुझे होश आया, अजीब ही डर था मुझ में, और मैंने हाँ कहने की बजाय बस नीचे देख कर मुस्कुरा गया. वो भी मुस्कुरा कर चली गयी. उसके बाद मैं जाता उसके साथ रोजाना उसके कोचिंग, उससे ज्यादा ज़िंदा- दिल लड़की आज तक नही मिल पायी मुझे, वो मुझ से मेरा स्कूटर मांग कर चलाने ले जाती, किसी के भी बारे में गलत बात आते ही बात टाल देती ये कह कर की "सबका अपना अलग तरीका है जीने का, तो जाने दो". बिना शब्दो के अब हम दोस्त थे, मैं नही कहूंगा की वो मेरी गर्लफ्रेंड थी, मगर हम रोज बाते करते, एक साथ कॉलेज बस लेते, रोजाना मिलते.
3- साल निकले गए. उन 3- सालो में मैंने ज़िन्दगी जी है, बिना किसी डर के. जब भी लगता की आगे क्या है, वो कहती "आगे का मत सोचो, आज को जीयो", लगता था की कभी ज़िन्दगी में गिरने लगा तो ये संभाल लेगी, और वो बस दोस्त नही, मेरा प्यार, साथ, परिवार, कभी कभी माँ भी बन चुकी थी. जब कभी मैं उसे बोलता "तुम मुझ से शादी करोगी ?" तो हर बार जवाब मिलता "पता नहीं या शायद नहीं, लेकिन मैं अपने पापा की पसंद से शादी करुँगी". मैं उससे शादी करना चाहता था. हम छोटे शहर में थे, पढ़ाई के बाद उसे अपना करियर बनाना था, इसलिए कहीं बाहर जाना जरुरी था, और एक दिन वो बोल ही दी "मैं चली जाउंगी, तब क्या करोगे ?" उसे देने को जवाब कभी नही हुआ करते थे मेरे पास. इन सब के साथ अब टाइम आ गया उसके जाने का. जाने से कुछ दिन पहले वो मिलने आयी थी, मुझे कह गयी "मैं प्यार तो करती हूं तुमसे, हमेशा साथ का वादा नही दे सकती, मगर जब तक तुम चाहोगे मैं तुम्हारे साथ हूं. शायद अब हमारी बाते रुक जाये, जाने कब ही हम मिल पाए या शायद कभी मिल ही न पाए, पर याद रखना मैं कल भी प्यार करती होऊँगी. अगर कभी लगने लगे की मैं दूर जा रही हूँ तो तुम तुम रोक लेना, जाने मत देना दिल से". वॊ चली गयी, और धीरे धीरे ज़िन्दगी से भी चली गयी, मैंने कभी रोका ही नही उसे.
उसके जाने के 3- साल बाद मिल पाया, वॊ अब भी वैसी ही है, खुश, ज़िंदादिल, हँसती हुई. सोचता हूँ क्या उसकी ज़िन्दगी में कभी परेशानी आयी ही नही या वॊ सच में ज़िन्दगी जीना जानती है. कोई हमेशा खुश कैसे रह सकता है ? खैर, ये था मेरा पहला प्यार, उसके बाद कभी हुआ ही नही किसी से. हम दोनों अपने अपने रास्तो पर चल रहे है.
13- साल पहले देखा था मैंने उसे, आज बस एक रिश्ता ये रह गया है की "प्यार मेरा था, शर्ते उसकी" !!